देश के कहीं खोते पारंपरिक खेल
- Admin 21
- 18 Dec, 2024
प्राचीन संस्कृति पर गर्व है। प्राचीन समय से ही ऋषि, मुनियों ने गहन से गहन विषयों को परिभाषित किया है।योग का उदाहरण सब के सामने है। प्राचीन काल में इतने साजो सामान नहीं होते थे जिनका उपयोग हो परन्तु जो भी आसानी से उपलब्ध हुआ उसी को मनोरंजन के लिए खेल बना लिया।खेल खेल में ही शिक्षा भी प्राप्त हो जाती थी।परंतु धीरे धीरे पश्चिमी सभ्यता को अपनाने की अन्धी होड़ और सबसे ज़्यादा मॉडर्न दिखाने की लालसा ने धीरे धीरे परंपरा, सभ्यता और गौरवशाली इतिहास से ही दूर करना प्रारंभ कर दिया। ना तो पूरी तरह से पश्चिमी सभ्यता को अंगीकृत कर पाये और ने ही गौरवशाली सभ्यता को पूर्णरूपेण से नकार पाये। बीच मँझधार में फँस के रह गये।पश्चिमी सभ्यता और उनके द्वारा विकसित खेल जो उन्होंने अपने सामाजिक परिवेश, सामर्थ्य तथा वातावरण को देख कर बनाया उसी के जंजाल में फँस के रह गये।कहाँ गए वो दिन जब कबड्डी, गुल्ली डंडा प्रमुख खेलों में शुमार होते थे।मौसम की परवाह नहीं थी। वो दिन याद करके रोंगटे खड़े हो जाते है जब सभी बच्चे मिलकर दोस्तों के साथ पिट्ठू खेलते समय अपनी बारी का इंतज़ार करते थे। कितना अपनापन रहता था खेलने के लिए, घर से बाहर जाने का बेचैनी रहती थी उस समय का इंतजार करते थे, कभी कभी तो पता नहीं क्या क्या बहाने बनाते थे।अब तो पश्चिम देशों की देन वीडियो गेम, मोबाइल के गेम, बच्चों का समय इन्हीं में गुजरता रहता है। छोटे बच्चों को मोबाइल, लैपटॉप या आई पैड से हमेशा चिपका देखकर बहुत कोफ़्त होती है परन्तु आज के भागमभाग की दौड में किसी के पास समय ही नहीं है की इन बातों पर ध्यान दे। होड़ तो अमीर बनने की लगी है।स्वास्थ्य के कमी को पूरा करने के लिए मेडिसिन तो है ही। महँगी हो या सस्ती, कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता, दोनों, पति - पत्नी, घर में पैसे ला रहे है। खर्च करने में कोई हिचक नहीं होती है। बच्चे तो क्रेच या आया(नैनी) की देख रेख में बड़े धीरे धीरे हो ही जाते है। न्यूक्लियर (एकल) फ़ैमिली का जमाना है, बड़ों का घर में होना तो बहुत क़िस्मत की बात होती है। बड़े भी अब तो न्यूक्लियर फ़ैमिली के रूप में ही रह कर जीवन गुज़ार रहे है।बच्चों के फ़ैमिली में एडजस्ट हो पाना भी उनकी लिये समस्या बन गई है। समस्या तो दोनों की हो गई है।दादा-दादी, नाना- नानी या कोई और घर में होता तो कम से कम बच्चे तो उनके साथ बाहर जा सकते थे। परंतु उनकी अनुपस्थिति में और स्वयं के पास समय नहीं होने के कारण बच्चे अधिकतर घरों में ही बंद रहते है।आया(नैनी) या किसी और के साथ बच्चों को बाहर भेजने में हमेशा डर ही लगा रहता है। नये नये क़िस्से रोज़ आते है।बच्चों का बाहर नहीं जाना, दूसरे बच्चों के साथ मेलज़ोल नहीं होना, टीम स्पिरिट का डेवलप नहीं होना, इन बच्चों पर दूरगामी प्रभाव पड़ते है पर उनपर ज़्यादा ध्यान ही नहीं है।अभी तो 2 मिनट्स मैगी का जमाना है। सब रेडीमेड या सब कुछ होम डिलीवरी से मिल जाता है। समय ही नहीं है की पुराने खेलों के बारे में सोचें या जाने। आस पास के देशों के बच्चों को पता ही नहीं की शाम क्या होती है, सुबह की क्या मस्त हवायें होती है। उन्होंने तो पश्चिमी सभ्यता के ऑनलाइन गेम का डुगडुगा थमा दिया गया। बच्चे उसी को ज़िंदगी समझ बैठे है और वही पश्चिमी देश के बच्चे ऑनलाइन गेम्स के साथ अन्य हर प्रकार के खेलों में पारंगत होते गए। यहाँ तक कि पारम्परिक खेलों पर भी पारंगतता हासिल कर लिया है।प्राचीन पारंपरिक ख़ेल स्वास्थ को ठीक रखने में बहुत सहायक हैं परंतु उनके अभाव में छोटे छोटे बच्चों में ही कितनी तरह की बीमारी आ गयी। अच्छे स्वास्थ्य के लिए पारंपरिक खेलों को वापस लाना आवश्यक हो गया है। प्राचीन पारंपरिक खेलों के प्रति जागरूकता बच्चों में लाने से कई सकारात्मक प्रभाव धीर धीरे दिखायीं देने लगेंगे।
ऑनलाइन खेलों और न्यू वर्ल्ड के एक्सपोज़र से बच्चे अपनी सभ्यता, संस्कृति से भी दूर होते जा रहे हैं। समाज में आने वाली बहुत से अपभ्रांतियाँ भी शायद इन सब की ही देन हो। कुंठा धीरे धीरे घर करती जा रही है जो कभी समय मिलने पर निकल पड़ती है। आपस के सौहार्द ख़त्म होते जा रहे हैं क्योंकि अब टीम में तो बहुत से खेल होते ही नहीं समय ही नहीं मिलता की एक दूसरे को समझें उनके विचारों का समावेश करें।समय की चाल को पहचान कर पश्चिम की अन्धी दौड़ को छोड़कर अपने संस्कृत, सभ्यता और इतिहास को बरकरार रखते हुए पश्चिमी सभ्यता के अच्छे गुणों को भी समाहित कर जीवन को समय के अनुरूप चलना ही उत्तम है। कुछ धीरे धीरे लुप्त होती जा रही खेलों का विवरण युवकों के लिए प्रस्तुत है जिस से वे भी इन खेलों के बारे में जान सके।
गुल्ली- डंडा
देश का सबसे आकर्षक पारंपरिक खेल, प्राचीनकाल से अब तक बहुत ही प्रचलित है।अभी भी गाँवों में छोटे शहरों में कहीं - कहीं देखने को मिल जाता है। इस पारंपरिक खेल के लिए दो लकड़ी के टुकड़ों की आवश्यकता होती है। एक लकड़ी(पतला डंडा) लगभग बारह से अठारह इंच लंबा होता है। दूसरी जिसे गुल्ली कहते हैं वो लगभग छः इंच से आठ इंच लम्बी तथा लगभग उतना ही मोटी होती है जितना डंडा होता है या थोड़ा अधिक का भी हो सकता है । इसके दोनों सिरों को छील कर थोड़ा नुकीला बना दिया जाता है। इस खेल के लिये बस यही दोनों आवश्यक है। खेलने के लिए गुल्ली को हवा में खिलाड़ी द्वारा उछाला जाता है और साथ ही गुल्ली पर खिलाड़ी जहाँ तक संभव हो सके ताकत से मारता है।जब गुल्ली हवा में होती है। दूसरे खिलाड़ी द्वारा गुल्ली चुराए जाने से पहले खिलाड़ी को तेजी से दौड़कर गोले के बाहर के किसी स्थान को छूना होता है।यह स्थान दोनों खिलाड़ियों के आपस के बातचीत से पहले ही तय कर लिया जाता है।खेल की महारत गुल्ली को उछालना और उस पर प्रहार करना ही है। जो जितनी ताक़त से मार कर गुल्ली को दूर फेक पाएगा उसको ज़्यादा से ज़्यादा समय पहले से निर्धारित स्थान को छूने का मिलेगा। अगर गुल्ली को मारते समय दूसरे खिलाड़ी ने गुल्ली लपक लिया तो पहले वाला खिलाड़ी आउट हो जाएगा। अगर खेल के नियमों का विश्लेषण करें तो आज के तथाकथित सभ्य समाज का क्रिकेट काफ़ी हद तक इस खेल से प्रभावित है। खेल की विशेषता है की इसमें शरीर के सभी अंगों की कसरत बिना कुछ किए हो जाती है जिसके लिए युवा समाज बॉडी बिल्डिंग सेंटर पर जाते हैं।
कुश्ती
कुश्ती और पहलवानी देश का एक अद्भुत पारंपरिक खेल है। यह देश के सबसे पुराने खेलों में से एक है और प्रागैतिहासिक काल या लगभग 4000 ईसा पूर्व का है। कुश्ती का पहला उल्लेख महाभारत महाकाव्य में मिलता है। कुश्ती, फ्री-स्टाइल कुश्ती से अलग है, जिसका अभ्यास पूरी दुनिया में किया जाता है। कुश्ती खेल तब समाप्त हो जाते हैं जब कोई खिलाड़ी अपनी हार का संकेत देता था। हालाँकि, आधुनिक मुकाबलों में अलग-अलग राउंड होते हैं और एक रेफरी होता है जो आवश्यकता पड़ने पर हस्तक्षेप करता है। ओलंपिक खेलों में अब इस खेल को प्रतियोगिताओं में से एक के रूप में शामिल किया गया है।
खेलने के नियम
इस पारंपरिक खेल को खेलना हालाँकि आसान लगता है, लेकिन ऐसा नहीं है।प्रतिद्वंद्वी को मुक्का मारने या लात मारने के बजाय बॉडी लॉक, थ्रो, सबमिशन होल्ड, पिन आदि का उपयोग किया जाता है। कुश्ती में दो सबसे प्रसिद्ध दावँ होते हैं - कसौटा और धोबी पछाड़ (शोल्डर थ्रो) (स्ट्रैंगल पिन)।
गुट्टे
यह एक आम पारंपरिक खेल है जो पूरे देश के ग्रामीण इलाकों में खेला जाता है। बच्चे और वयस्क समान रूप से इस सदियों पुराने खेल को खेलने का आनंद लेते हैं। इस प्रक्रिया में पांच छोटे पत्थरों का उपयोग किया जाता है।
गेम खेलने के नियम
इस खेल में जब तक एक हवाई गुट्टे पृथ्वी से नहीं टकराता, प्रक्रिया दोहराई जाती है।जब हवा में कई पत्थर हों तो प्रक्रिया और भी कठिन हो जाती है। पुराने जमाने के इस खेल की सरलता और कम लागत इसे खूबसूरत बनाती है। इसके अलावा, कोई भी इस खेल में भाग ले सकता है।
मल्लखंब
मल्लखंब के नाम से जाना जाने वाला एक प्राचीन भारतीय अनुशासन योग, व्यायाम और मार्शल आर्ट का मिश्रण है। इसे ऐतिहासिक भारत का "मातृ खेल" कहा जाता है। "मल्ला" और "खंब" दोनों शब्द जिमनास्ट को संदर्भित करते हैं। इसलिए, " मल्लखंभ " का अर्थ "जिम्नास्ट पोल" है। मल्लखंब का उपयोग एक समय पहलवानों द्वारा अपने कुश्ती कौशल को निखारने के लिए किया जाता था। फिर भी आज इसकी खूबियों को इसका श्रेय दिया जाता है।
खेलने के नियम
क्लासिक प्रकार के मल्लखंब को पोल मल्लखंब कहा जाता है। प्रतिभागी एक लकड़ी के खंभे पर प्रतिस्पर्धा करते हैं जो 2.6 मीटर लंबा होता है और जिसकी आधार परिधि 55 सेंटीमीटर होती है। ध्रुव धीरे-धीरे संकीर्ण होता जाता है जब तक कि इसकी ऊपरी परिधि 35 से.मी. न हो जाए। तुलनात्मक रूप से, हुक या जंजीरों से लटकाया गया एक छोटा खंभा मलखंब को लटकाने में सहारे के रूप में काम करता है। लटकते मल्लखंब में , खंभे का आधार जमीन के संपर्क में नहीं होता है। 5.5 मीटर लंबी और 2 सेमी व्यास वाली लटकी हुई रस्सी पर रस्सी मल्लखंभ किया जाता है।
कबड्डी
कबड्डी टीम खेल है जिसमें केवल फुर्ती और ताकत की आवश्यकता होती है। यह भारत में बनाया गया था और आज पूरी दुनिया में इसका आनंद लिया जाता है। सांस रोकने के लिए हिंदी शब्द कबड्डी का उच्चारण करते हुए खिलाड़ी खेलते हैं। खिलाड़ियों की दो टीमों में प्रत्येक में सात से बारह सदस्य शामिल होते हैं। एक टीम के खिलाड़ियों को दूसरी टीम के क्षेत्र में प्रवेश करना होगा। ऐसा करते समय उन्हें अधिक से अधिक विरोधियों से संपर्क करने का प्रयास करना होता है।
खेलने के नियम
कबड्डी के मूल प्रत्येक टीम के खिलाड़ी बारी-बारी से केंद्र रेखा के पार विरोधी टीम के आधे कोर्ट तक दौड़ते हैं, विरोधियों को टैग करते हैं और फिर वापस दौड़ते हैं। वे जितने अधिक विरोधियों को टैग करेंगे, उन्हें उतने अधिक अंक प्राप्त होंगे; लेकिन, यदि दूसरी टीम शारीरिक रूप से उन्हें कोर्ट के आधे हिस्से में लौटने से रोकती है, तो उन्हें कोई अंक नहीं मिलता है।
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